हमारी देखियो ग़फ़लत न समझे वाए नादानी
हमें दो दिन के बहलाने को उम्र-ए-बे-मदार आई
Anwar Masood
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Habib Jalib
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हवस हम पार होएँ क्यूँकि दरिया-ए-मोहब्बत से
उस परी-रू ने न मुझ से है निबाही क्या करूँ
सुनता हूँ न कानों से न कुछ मुँह से हूँ बकता
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
माथे पे लगा संदल वो हार पहन निकले
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
शौक़-ए-ख़राश-ए-ख़ार मिरे दिल में रह गया
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है
मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा
ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए