देखें क्या अब के असीरी हमें दिखलाती है
लोग कहते हैं कि फिर फ़स्ल-ए-बहार आती है
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रंग-ए-गुल-ए-शगुफ़्ता हूँ आब-ए-रुख़-ए-चमन हूँ मैं
तलाश इस तरह बज़्म-ए-ऐश में है बे-निशानों की
लुत्फ़-ए-शब-ए-मह ऐ दिल उस दम मुझे हासिल हो
हँसते थे मिरे हाल को जो यार देख कर
दिल में इक इज़्तिराब बाक़ी है
न काफ़िर से ख़ल्वत न ज़ाहिद से उल्फ़त
हरगिज़ न मिरे महरम-ए-हमराज़ हुए तुम
न पाया खोज बरसों नक़्श-ए-पा-ए-रफ़्तगाँ ढूँढे
मुज़्दा ये सबा उस बुत-ए-बे-बाक को पहुँचा
हुए आज़िम-ए-मुल्क-ए-अदम जो 'हवस' तो ख़ुशी ये हुई थी कि ग़म से छुटे
तू जो पड़ा फिरता है आज कहीं कल कहीं
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ