दोस्तों की रिफाक़तें भी दुरुस्त
भूल जाने का ग़म सिवा लेकिन
याद रक्खें तो वसवसे हैं बहुत
आँख चेहरा नज़र कहाँ से लाएँ
अपने ही घर चलें
मिलें सब से
हम में इक दूसरा ही बस्ता है
सच है वो हम सभों से अच्छा है
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एल्बम
तसल्ली
मिरे वजूद से आती है इक सदा मुझ को
सामने ख़ंजर रख कर देखें
पुराने तमाशे
आँसुओं में कभी ढली है रात
मता-ए-उम्र-ए-गुज़िश्ता समेट कर ले जा
हम-ज़ाद
आवाज़ों के जंगल में सुनाई नहीं देता
ग़ज़ल-मिज़ाज है यकसर ग़ज़ल का लहजा है
किसी का नक़्श जो पल भर रहा है आँखों में
हर तरफ़ रात का फैला हुआ दरिया देखूँ