Ghazals of Mohammad Alvi

Ghazals of Mohammad Alvi
नाममोहम्मद अल्वी
अंग्रेज़ी नामMohammad Alvi
जन्म की तारीख1927
मौत की तिथि2018
जन्म स्थानAhmadabad

ज़मीन लोगों से डर गई है

ज़मीं कहीं भी न थी चार-सू समुंदर था

यूँही हम पर सब के एहसाँ हैं बहुत

यूँ तो कम कम थी मोहब्बत उस की

यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है

यक्का उलट के रह गया घोड़ा भड़क गया

वो मेरे साथ आने पे तय्यार हो गया

वो दिन कितना अच्छा था

उठते हुए क़दमों की धमक आने लगी है

उठी कुछ ऐसे बदन की ख़ुश्बू

उसे न देख के देखा तो क्या मिला मुझ को

तीसरी आँख खुलेगी तो दिखाई देगा

थोड़ी सर्दी ज़रा सा नज़ला है

सुखाने बाल ही कोठे पे आ गए होते

सोते सोते अचानक गली डर गई

सोचते रहते हैं अक्सर रात में

शोर साहिल का समुंदर में न था

शेर तो सब कहते हैं क्या है

शरीफ़े के दरख़्तों में छुपा घर देख लेता हूँ

शांति की दुकानें खोली हैं

शगुन ले कर न क्यूँ घर से चला मैं

सातवीं मंज़िल से कूदा चाहिए

सर्दी में दिन सर्द मिला

सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं

सच कहाँ कहता है जाने वाला

सच है कि वो बुरा था हर इक से लड़ा किया

रौशनी कुछ तो मिले जंगल में

रात पड़े घर जाना है

रात मिली तन्हाई मिली और जाम मिला

रात के मुँह पर उजाला चाहिए

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