Ghazals of Mohammad Alvi (page 2)

Ghazals of Mohammad Alvi (page 2)
नाममोहम्मद अल्वी
अंग्रेज़ी नामMohammad Alvi
जन्म की तारीख1927
मौत की तिथि2018
जन्म स्थानAhmadabad

पढ़ के हैराँ हूँ ख़बर अख़बार में

ऑफ़िस में भी घर को खुला पाता हूँ मैं

नींद रातों की उड़ा देते हैं

न जाने दिल कहाँ रहने लगा है

मुँह-ज़बानी क़ुरआन पढ़ते थे

मैं अपने आप से डरने लगा था

मैं अपना नाम तिरे जिस्म पर लिखा देखूँ

लबों पर यूँही सी हँसी भेज दे

क्या कहते क्या जी में था

कुछ तो इस दिल को सज़ा दी जाए

कोई मौसम हो भले लगते थे

कोई बैंड-बाजा सा कानों में था

कितना हसीन था तू कभी कुछ ख़याल कर

ख़्वाब में एक मकाँ देखा था

खिड़कियों से झाँक कर गलियों में डर देखा किए

कल रात सूनी छत पे अजब सानेहा हुआ

कल रात जगमगाता हुआ चाँद देख कर

कभी तुझ से ऐसा भी याराना था

कभी तो ऐसा भी हो राह भूल जाऊँ मैं

जाती हुई लड़की को सदा देना चाहिए

जाते जाते देखना पत्थर में जाँ रख जाऊँगा

इस की बात का पाँव न सर

इस शहर में कहीं पे हमारा मकाँ भी हो

इरादा है किसी जंगल में जा रहूँगा मैं

इधर रहा हूँ उधर रहा हूँ

हुआ चली तो मिरे जिस्म ने कहा मुझ को

हज़ारों लाखों दिल्ली में मकाँ हैं

हर-चंद जागते हैं प सोए हुए से हैं

हर इक झोंका नुकीला हो गया है

गुलों के दरमियाँ अच्छी लगी हैं

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