सोज़-ए-ग़म चीज़ है क्या कुछ हमें मा'लूम तो हो
सोज़-ए-ग़म चीज़ है क्या कुछ हमें मा'लूम तो हो
ये मरज़ है कि दवा कुछ हमें मा'लूम तो हो
रोज़-ओ-शब होती रहे ताज़ा क़यामत बरपा
ज़िंदगानी का मज़ा कुछ हमें मा'लूम तो हो
हम भी परवाना-मिज़ाजी का दिखाएँ आलम
क़ीमत-ओ-क़द्र-ए-वफ़ा कुछ हमें मा'लूम तो हो
फिर लगा लेंगे कभी चाँद सितारों का सुराग़
पहले ख़ुद अपना पता कुछ हमें मा'लूम तो हो
आप के लुत्फ़ से महरूम जो हम रहते हैं
किस ख़ता की है सज़ा कुछ हमें मा'लूम तो हो
दिल की धड़कन न सही आप की आहट ही सही
साज़-ए-हस्ती की सदा कुछ हमें मा'लूम तो हो
जान-ओ-दिल हम भी करें नज़्र-ए-मोहब्बत 'मंशा'
इतनी मेहनत का सिला कुछ हमें मा'लूम तो हो
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