कहाँ मिलेगी मिसाल मेरी सितमगरी की
कि मैं गुलाबों के ज़ख़्म काँटों से सी रहा हूँ
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अगरचे मैं इक चटान सा आदमी रहा हूँ
जुगनू गुहर चराग़ उजाले तो दे गया
दिसम्बर मुझे रास आता नहीं
हम अपनी धरती से अपनी हर सम्त ख़ुद तलाशें
अश्क अपना कि तुम्हारा नहीं देखा जाता
बहुत दिनों बा'द
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
साँसों के इस हुनर को न आसाँ ख़याल कर
भूल जाओ मुझे
आप की आँख से गहरा है मिरी रूह का ज़ख़्म
मेरे कमरे में उतर आई ख़मोशी फिर से
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद न कर दे