ये ज़ुल्म देखिए कि घरों में लगी है आग
और हुक्म है मकीन निकल कर न घर से आएँ
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अगर चमन का कोई दर खुला भी मेरे लिए
हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता
जितना तहज़ीब-ए-बदन से मैं सँवरता जाऊँ
किसी के दोश न मरकब से इस्तिफ़ादा किया
हम ने भी देखी है दुनिया 'मोहसिन'
दूर तक सब्ज़ा कहीं है और न कोई साएबाँ
रस्ते में कोई आ के इनाँ-गीर हो न जाए
क्या देखते हो राह में रुक कर यहाँ वहाँ
ठहरे हुए न बहते हुए पानियों में हूँ
कोई कश्ती में तन्हा जा रहा है
ये जौर अहल-ए-अज़ा पर मज़ीद करते रहे
दोश-ए-हवा पे तिनकों का ये आशियाना क्या