तिरे सुख़न के सदा लोग होंगे गिरवीदा
मिठास उर्दू की थोड़ी बहुत ज़बान में रख
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
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Friends Poetry
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खींच कर मुझ को हर इक नक़्श-ओ-निशाँ ले जाए
ये दोस्ती का तक़ाज़ा है इस को ध्यान में रख
हम तिरे शहर से यूँ जान-ए-वफ़ा लौट आए
उसी के प्यार को दिल से निकाल रक्खा है
फिसलने वाला था ख़ुद को मगर सँभाल गया
ज़मीन-ए-फ़िक्र में लफ़्ज़ों के जंगल छोड़ जाना
गुमाँ की क़ैद-ए-हिसार-ए-क़यास से निकलो
नफ़स नफ़स को हवा की रिकाब में रखना
कुछ अब के जंग पे उस की गिरफ़्त ऐसी थी