फिर कर्बला के ब'अद दिखाई नहीं दिया
ऐसा कोई भी शख़्स कि प्यासा कहें जिसे
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खिलौनों की दुकानों की तरफ़ से आप क्यूँ गुज़रे
फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे
मिट्टी का बदन कर दिया मिट्टी के हवाले
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं
देखना है तुझे सहरा तो परेशाँ क्यूँ है
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
वुसअत-ए-सहरा भी मुँह अपना छुपा कर निकली
आख़िरी सच
एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है
हाँ इजाज़त है अगर कोई कहानी और है