सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
Jaun Eliya
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(410) Peoples Rate This
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तुम ने जब शहर को जंगल में बदल डाला है
जुदा रहता हूँ मैं तुझ से तो दिल बे-ताब रहता है
गर कभी रोना ही पड़ जाए तो इतना रोना
पैरों को मिरे दीदा-ए-तर बाँधे हुए है
सहरा-पसंद हो के सिमटने लगा हूँ मैं
आख़िरी सच
मिरी हथेली पे होंटों से ऐसी मोहर लगा
मैं राह-ए-इश्क़ के हर पेच-ओ-ख़म से वाक़िफ़ हूँ
पचपन बरस की उम्र तो होने को आ गई
ये बुत जो हम ने दोबारा बना के रक्खा है