तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
Wasi Shah
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आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
थकन को ओढ़ के बिस्तर में जा के लेट गए
दौलत से मोहब्बत तो नहीं थी मुझे लेकिन
किसी की याद आती है तो ये भी याद आता है
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने
हँस के मिलता है मगर काफ़ी थकी लगती हैं
बादशाहों को सिखाया है क़लंदर होना
पत्थर के होंट
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
लिपस्टिक
ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे
अब आप की मर्ज़ी है सँभालें न सँभालें