फैलती है शाम देखो डूबता है दिन अजब
आसमाँ पर रंग देखो हो गया कैसा ग़ज़ब
खेत हैं और उन में इक रू-पोश से दुश्मन का शक
सरसराहट साँप की गंदुम की वहशी गर महक
इक तरफ़ दीवार-ओ-दर और जलती-बुझती बतियाँ
इक तरफ़ सर पर खड़ा ये मौत जैसा आसमाँ
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दिल की ख़लिश तो साथ रहेगी तमाम उम्र
ख़ुमार-ए-शब में उसे मैं सलाम कर बैठा
इतने ख़ामोश भी रहा न करो
फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी
जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं
ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं
मौत
मिलन की रात
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
उस का नक़्शा एक बे-तरतीब अफ़्साने का था
कुछ वक़्त चाहते थे कि सोचें तिरे लिए
नशेब-ए-वहम फ़राज़-ए-गुरेज़-पा के लिए