जानते थे दोनों हम उस को निभा सकते नहीं
उस ने व'अदा कर लिया मैं ने भी व'अदा कर लिया
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कोयलें कूकीं बहुत दीवार-ए-गुलशन की तरफ़
मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ 'मुनीर'
मिरे पास ऐसा तिलिस्म है जो कई ज़मानों का इस्म है
अपनी ही तेग़-ए-अदा से आप घायल हो गया
ख़्वाब होते हैं देखने के लिए
हैं रवाँ उस राह पर जिस की कोई मंज़िल न हो
वहम ये तुझ को अजब है ऐ जमाल-ए-कम-नुमा
तुझ से बिछड़ कर क्या हूँ मैं अब बाहर आ कर देख
सहन को चमका गई बेलों को गीला कर गई
गली के बाहर तमाम मंज़र बदल गए थे
कोई ओझल दुनिया है
ख़याल-ए-यकता में ख़्वाब इतने