देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर
हम तो अपने हैं मियाँ ग़ैर से शरमाया कर
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इस मर्ग को कब नहीं मैं समझा
पीछे पड़ी हैं दिल के बे-तरह मेरी आँखें
चराग़-ए-हुस्न-ए-यूसुफ़ जब हो रौशन
शब हम को जो उस की धुन रही है
होंटों तक आते आते हुई वो भी सर्द आह
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
हसरत पे उस मुसाफ़िर-ए-बे-कस की रोइए
दिल के आईने की हम लेते हैं तब है है ख़बर
गरचे तुम ताज़ा गुल-ए-गुलशन-ए-रानाई हो
छुरियाँ चलीं शब दिल ओ जिगर पर
ले गया काजल चुरा दुज़्द-ए-हिना
दिल ख़ुश न हुआ ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से निकल कर