इक हाल हो तो यारो उस का बयाँ करें हम
क्या क्या न आशिक़ी में हालात काटते हैं
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साया-ए-दीवार जो रोज़-ए-क़यामत में न था
काम क्या है प नहीं चाहती हिम्मत हरगिज़
किस राह गया लैला का महमिल नहीं मालूम
पर्दा उठा के मेहर को रुख़ की झलक दिखा कि यूँ
जब दिल का जहाज़ अपना तबाही में पड़े है
जाने दे टुक चमन में मुझे ऐ सबा सरक
कर के ज़ख़्मी तू मुझे सौंप गया ग़ैरों को
हाथ दोनों कफ़-ए-अफ़्सोस की सूरत लिक्खे
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
रही हमेशा तरक़्क़ी मिरी असीरी को
जो है सो तुम्हारा ही तरफ़-दार है साहिब
अब मिरी बात जो माने तो न ले इश्क़ का नाम