क्यूँकर न तुझे दौड़ के छाती से लगा लूँ
फूलों का गले में तिरे ये हार ग़ज़ब है
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क़िस्सा-ए-मजनूँ पसंद-ए-ख़ातिर जानाना है
ऊधर गया तू ग़ुस्ल को हम्माम की तरफ़
गो अब हज़ार शक्ल से जल्वा करे कोई
कहीं मग़्ज़ उस के मैं सुब्ह-दम तिरी बू-ए-ज़ुल्फ़-ए-रसा गई
शेर क्या जिस में नोक-झोक न हो
जो कि पेशानी पे लिक्खा है वही होता है
तौबा तो की है इश्क़ से पर इस का क्या इलाज
कब सबा सू-ए-असीरान-ए-क़फ़स आती है
मुँह में जिस के तू शब-ए-वस्ल ज़बाँ देता है
पहना जो मैं ने जामा-ए-दीवानगी तो इश्क़
तदबीर मआश इस जा है शर्त-ए-ख़िरद-मंदी
दिल ही दिल में याँ मोहब्बत अपना घर करती रही