शाहिद रहियो तू ऐ शब-ए-हिज्र
झपकी नहीं आँख 'मुसहफ़ी' की
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(286) Peoples Rate This
लुट के मंज़िल से कोई यूँ तो न आया होगा
मुल्हिद हूँ अगर मैं तो भला इस से तुम्हें क्या
अपना तो तूल-ए-उम्र से घबरा गया है जी
बैठा था आ के क़ैस तो लैला के दर पे लेक
मैं जिन को बात करना ऐ 'मुसहफ़ी' सिखाया
छुरियाँ चलीं शब दिल ओ जिगर पर
बचा गर नाज़ से तो उस को फिर अंदाज़ से मारा
आज की शब गर रहेंगे 'मुसहफ़ी' बैरून-ए-दर
ग़ुबार-ए-दिल को में मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
हैं यादगार-ए-आलम-ए-फ़ानी ये दिनों चीज़
चराग़-ए-हुस्न-ए-यूसुफ़ जब हो रौशन
मज्लिस में उस की अब तो दरबार सा लगे है