मेरे तीखे शेर की क़ीमत दुखती रग पर कारी चोट
चिकनी चुपड़ी ग़ज़लें बे-शक आप ख़रीदें सोने से
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शाख़ों पर इबहाम के पैकर लटक रहे हैं
यूँ तोड़ न मुद्दत की शनासाई इधर आ
खिलते हैं दिल में फूल तिरी याद के तुफ़ैल
वो एक पल का साथ ब-वक़्त-ए-नमाज़ है
बुज़-दिली
उस ने मुझ को याद फ़रमाया यक़ीनन
कई सूखे हुए पत्ते हरे मालूम होते हैं
बचपन में आकाश को छूता सा लगता था
ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं है कि मैं क्या हूँ
ईदी कैसे बढ़ाई जाए
सुनता हूँ कि तुझ को भी ज़माने से गिला है
ग़ौग़ा खटपट चीख़म धाड़