खिलते हैं दिल में फूल तिरी याद के तुफ़ैल
आतिश-कदा तो देर हुई सर्द हो गया
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ईदी कैसे बढ़ाई जाए
बसारतों पे भँवर इंकिशाफ़ करता है
ख़ुद मुझ को भी मालूम नहीं है कि मैं क्या हूँ
पाकीज़गी का सोलहवाँ साल
सूर-ए-इस्राफ़ील
जो होंटों पे मोहर-ए-ख़मोशी लगा दी
उस ने मुझ को याद फ़रमाया यक़ीनन
मुस्कुराहट का बीज
जब सराबों पे क़नाअत का सलीक़ा आया
मौत का दूसरा नाम
क्या वस्ल की साअत को तरसने के लिए था