मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 9)

मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 9)
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

जब कहा मैं ने कि मर मर के बचे हिज्र में हम

जब कहा मैं हूँ तिरे इश्क़ में बदनाम कि तू

जान ये कह के बुत-ए-होश-रुबा ने ले ली

इतने अच्छे हो कि बस तौबा भली

इस बात का मलाल नहीं है कि दिल गया

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता

हम ने पाई लज़्ज़त-ए-दीदार लेकिन दूर से

हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे

हम उम्र के साथ हैं सफ़र में

हिज्र में हो गया विसाल का क्या

हौसला इम्तिहान से निकला

ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है

ग़ुरूर-ए-उल्फ़त की तर्ज़-ए-नाज़िश अजब करिश्मे दिखा रही है

गवाह-ए-वस्ल-ए-अदू सर झुका के देख न लो

फ़स्ल-ए-गुल भी तरस के काटी है

इक पर्दा-नशीं की आरज़ू है

इक नक़्श-ए-ख़याल रू-ब-रू है

दूर क्यूँ जाऊँ यहीं जल्वा-नुमा बैठा है

दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ

दिल-दादगान-ए-हुस्न से पर्दा न चाहिए

दिल ले के हसीनों ने ये दस्तूर निकाला

दिल का मोआ'मला जो सुपुर्द-ए-नज़र हुआ

दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा

दम-ए-आख़िर मुसीबत काट दो बहर-ए-ख़ुदा मेरी

चाहत की नज़र आप से डाली भी गई है

बैठे हुए हैं हम ख़ुद आँखों में धूल डाले

असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे

अपने अहद-ए-वफ़ा को भूल गए

ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं

अगर तुम दिल हमारा ले के पछताए तो रहने दो

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