मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 3)

मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 3)
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

रंज-ए-ग़ुर्बत में देख कर मुझ को

क़िबला बन जाए जहाँ तू कोई पत्थर रख दे

क़यामत में बड़ी गर्मी पड़ेगी हज़रत-ए-ज़ाहिद

क़ासिद ने ख़बर आमद-ए-दिलबर की उड़ा दी

क़ैस ने पर्दा-ए-महमिल को जो देखा तो कहा

क़ब्र पर क्या हुआ जो मेला है

फूंके देता है किसी का सोज़-ए-पिन्हानी मुझे

पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर

पहले हम में थे और अब हम से जुदा रहते हैं

पड़ा हूँ इस तरह उस दर पे 'मुज़्तर'

पड़ गए ज़ुल्फ़ों के फंदे और भी

निगाहों में फिरती है आठों-पहर

निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते

निछावर बुत-कदे पर दिल करूँ का'बा तो कोसों है

नज़र के सामने का'बा भी है कलीसा भी

नमक-पाश ज़ख़्म-ए-जिगर अब तो आ जा

नहीं मंज़ूर जब मिलना तो वा'दे की ज़रूरत क्या

नहीं हूँ मैं तो तिरी बंदगी के क्या मा'नी

न उस के दामन से मैं ही उलझा न मेरे दामन से ये ही अटकी

न रो इतना पराए वास्ते ऐ दीदा-ए-गिर्यां

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ

मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी

मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी

मोहब्बत क़द्र-दाँ होती तो फिर काहे का रोना था

मोहब्बत में किसी ने सर पटकने का सबब पूछा

मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को

मोहब्बत बुत-कदे में चल के उस का फ़ैसला कर दे

मियान-ए-हश्र ये काफ़िर बड़े इतराए फिरते हैं

मेरी हस्ती से तो अच्छी हैं हवाएँ यारब

मेरी अरमान भरी आँख की तासीर है ये

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