मुसीबत और लम्बी ज़िंदगानी
बुज़ुर्गों की दुआ ने मार डाला
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जब उन की पतियाँ बिखरें तो समझे मस्लहत उस की
अब कौन फिरे कू-ए-बुत-ए-दुश्मन-ए-दीं से
जनाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़ में लड़ने से क्या हासिल
मकतब की आशिक़ी भी तारीख़-ए-ज़िंदगी थी
यहाँ से जब गई थी तब असर पर ख़ार खाए थी
आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
हम वफ़ा करते हैं हम पर जौर कोई क्यूँ करे
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
पर्दे वाले भी कहीं आते हैं घर से बाहर
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता
ऐश के रंग मलालों से दबे जाते हैं