मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 7)
नाम | मुज़्तर ख़ैराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muztar Khairabadi |
जन्म की तारीख | 1865 |
मौत की तिथि | 1927 |
बाज़ू पे रख के सर जो वो कल रात सो गया
बाक़ी की मोहब्बत में दिल साफ़ हुआ इतना
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
अपनी महफ़िल में रक़ीबों को बुलाया उस ने
अपने दिल को तिरी आँखों पे फ़िदा करता हूँ
ऐसी क़िस्मत कहाँ कि जाम आता
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
ऐ इश्क़ कहीं ले चल ये दैर-ओ-हरम छूटें
ऐ हिना रंग-ए-मोहब्बत तो है मुझ में भी निहाँ
ऐ बुतो रंज के साथी हो न आराम के तुम
अहबाब-ओ-अक़ारिब के बरताव कोई देखे
अगर तक़दीर सीधी है तो ख़ुद हो जाओगे सीधे
अदू को छोड़ दो फिर जान भी माँगो तो हाज़िर है
अब कौन फिरे कू-ए-बुत-ए-दुश्मन-ए-दीं से
आशिक़ों की रूह को ता'लीम-ए-वहदत के लिए
आप से मुझ को मोहब्बत जो नहीं है न सही
आओ तो मेरे आइना-ए-दिल के सामने
आँखें न चुराओ दिल में रह कर
आइना देख कर ग़ुरूर फ़ुज़ूल
आह-ए-रसा ख़ुदा के लिए देख-भाल के
ज़ेर-ए-ज़मीं रहूँ कि तह-ए-आसमाँ रहूँ
ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
वो क़ज़ा के रंज में जान दें कि नमाज़ जिन की क़ज़ा हुई
वक़्त-ए-आख़िर याद है साक़ी की मेहमानी मुझे
वफ़ा क्या कर नहीं सकते हैं वो लेकिन नहीं करते
उस से कह दो कि वो जफ़ा न करे
उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते
उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
उम्र काटी बुतों की आड़ों में