मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 2)

मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 2)
नाममुज़्तर ख़ैराबादी
अंग्रेज़ी नामMuztar Khairabadi
जन्म की तारीख1865
मौत की तिथि1927

उन को आती थी नींद और मुझ को

उन का इक पतला सा ख़ंजर उन का इक नाज़ुक सा हाथ

उम्र सब ज़ौक़-ए-तमाशा में गुज़ारी लेकिन

उड़ा कर ख़ाक हम काबे जो पहुँचे

तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ

तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ

तुम्हारी जल्वा-गाह-ए-नाज़ में अंधेर ही कब था

तुम क्यूँ शब-ए-जुदाई पर्दे में छुप गए हो

तुम अगर चाहो तो मिट्टी से अभी पैदा हों फूल

तू न आएगा तो हो जाएँगी ख़ुशियाँ सब ख़ाक

ठहरना दिल में कुछ बेहतर न जाना

तेरी उलझी हुई बातों से मिरा दिल उलझा

तेरी रहमत का नाम सुन सुन कर

तेरे मूए-ए-मिज़ा खटकते हैं

तेरे घर आएँ तो ईमान को किस पर छोड़ें

तसव्वुर में तिरा दर अपने सर तक खींच लेता हूँ

तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा

तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का

तरीक़ याद है पहले से दिल लगाने का

तमन्ना इक तरह की जान है जो मरते दम निकले

तड़प ही तड़प रह गई सिर्फ़ बाक़ी

सूरत तो एक ही थी दो घर हुए तो क्या है

सुनोगे हाल जो मेरा तो दाद क्या दोगे

सुब्ह तक कौन जियेगा शब-ए-तन्हाई में

साक़ी वो ख़ास तौर की ता'लीम दे मुझे

साक़ी तिरी नज़र तो क़यामत सी ढा गई

साक़ी ने लगी दिल की इस तरह बुझा दी थी

साक़ी मिरा खिंचा था तो मैं ने मना लिया

सदमा बुत-ए-काफ़िर की मोहब्बत का न पूछो

रूह देती रही तर्ग़ीब-ए-तअ'ल्ली बरसों

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