मुज़्तर ख़ैराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का मुज़्तर ख़ैराबादी (page 6)
नाम | मुज़्तर ख़ैराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Muztar Khairabadi |
जन्म की तारीख | 1865 |
मौत की तिथि | 1927 |
हस्ती-ए-ग़ैर का सज्दा है मोहब्बत में गुनाह
हसरतों को कोई कहाँ रक्खे
हसीनों पर नहीं मरता मैं इस हसरत में मरता हूँ
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
हमारे एक दिल को उन की दो ज़ुल्फ़ों ने घेरा है
हाल-ए-दिल अग़्यार से कहना पड़ा
हाल ज़ाहिद जो मय-ए-नाब का पूछे तो कहूँ
हाल उस ने हमारा पूछा है
गए हम दैर से काबे मगर ये कह के फिर आए
फ़ना के बा'द इस दुनिया में कुछ बाक़ी नहीं रहता
इक सदमा-ए-मोहब्बत इक सदमा-ए-जुदाई
इक हम कि हम को सुब्ह से है शाम की ख़ुशी
एक हम हैं कि जहाँ जाएँ बुरे कहलाएँ
इक हम हैं कि हम ने तुम्हें माशूक़ बनाया
दिल उन को मुफ़्त देने में दुश्मन को रश्क क्यूँ
दिल क्या करे जो राज़ मोहब्बत का खुल गया
दिल को मैं अपने पास क्यूँ रक्खूँ
दिल काम का नहीं तो न लो जान नज़्र है
धोके से बुला कर जो मिला था तो वो मुझ से
देख कर काबे को ख़ाली में ये कह कर आ गया
दम-ए-ख़्वाब-ए-राहत बुलाया उन्हों ने तो दर्द-ए-निहाँ की कहानी कहूँगा
दम निकल जाएगा रुख़्सत का अभी नाम न लो
दम दे दिया है किस रुख़-ए-रौशन की याद में
चूकी नज़र जो ज़ाहिद-ए-ख़ाना-ख़राब की
चाहत की तमन्ना से कोई आँच न आई
बुतों में नूर-ए-ज़ात-ए-किब्रिया मालूम होता है
बुत-ख़ाने में क्या याद-ए-इलाही नहीं मुमकिन
बुत-कदे में तो तुझे देख लिया करता था
बुरा हूँ मैं जो किसी की बुराइयों में नहीं
बिछड़ना भी तुम्हारा जीते-जी की मौत है गोया