इक सदमा-ए-मोहब्बत इक सदमा-ए-जुदाई
गिनती के दो हैं लेकिन लाखों की जान पर हैं
Javed Akhtar
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
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इन बुतों की ही मोहब्बत से ख़ुदा मिलता है
किसी के कम हैं किसी के बहुत मगर ज़ाहिद
मैं मसीहा उसे समझता हूँ
लुत्फ़-ए-क़ुर्बत है मय-परस्ती में
हाल ज़ाहिद जो मय-ए-नाब का पूछे तो कहूँ
तसव्वुर ख़ाना-आबादी करेगा
क्या असर ख़ाक था मजनूँ के फटे कपड़ों में
मैं तिरी राह-ए-तलब में ब-तमन्ना-ए-विसाल
हिज्र में हो गया विसाल का क्या
मेरे ग़ुबार की ये तअ'ल्ली तो देखिए
दुआ से कुछ न हुआ इल्तिजा से कुछ न हुआ
उन्हों ने क्या न किया और क्या नहीं करते