नहीं है जिस का हल अब तो कोई 'नदीम' बस इक सिवा तुम्हारे
मैं एक ऐसा ही मसअला हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
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तिरी क़ुर्बतें हैं सकूँ जान-ए-जानाँ
तुझे तहरीर किया
उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
तू समझता है गर फ़ुज़ूल मुझे
सरहद
तुम्हारी महफ़िल से जा रहा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
फ़ुज़ूल वक़्त समझ के गुज़ार कर मुझ को
कई साल ब'अद
साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
तुम्हें हमारी मोहब्बतों के हसीन जज़्बे बुला रहे हैं