तमाम उम्र तिरे इंतिज़ार में हमदम
ख़िज़ाँ-रसीदा रहा हूँ बहार कर मुझ को
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उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
दुनिया बदल गई थी कोई ग़म न था मुझे
तुझ से मैं जंग का एलान भी कर ही दूँगा
वस्ल ने जब मिरी तख़्लीक़ को ज़ंजीर क्या
दिसम्बर
तुम्हें हमारी मोहब्बतों के हसीन जज़्बे बुला रहे हैं
तुझे तहरीर किया
साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
सरहद
कई साल ब'अद