उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
फिर मिरे ख़्वाब में आने की ज़रूरत क्या है
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तुम्हें हमारी मोहब्बतों के हसीन जज़्बे बुला रहे हैं
वस्ल ने जब मिरी तख़्लीक़ को ज़ंजीर क्या
साहिल पे तेरे ब'अद की वीरानी खा गई
अपनी उलझन को बढ़ाने की ज़रूरत क्या है
कई साल ब'अद
दिसम्बर
नहीं है जिस का हल अब तो कोई 'नदीम' बस इक सिवा तुम्हारे
तुझे तहरीर किया
मोहब्बत
फ़ुज़ूल वक़्त समझ के गुज़ार कर मुझ को