मतलब का ज़माना है 'नादिर' कोई क्या देगा
मुझ सोख़ता-ए-क़िस्मत को देगा तो ख़ुदा देगा
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जो भी दे दे वो करम से वही ले ले 'नादिर'
लगता नहीं कहीं भी मिरा दिल तिरे बग़ैर
हम उन के ग़म में तड़प रहे हैं जो ग़ैर से दिल लगा चुके हैं
किसी से फिर मैं क्या उम्मीद रक्खूँ
लुट गया दिल कहाँ नहीं मालूम
नंग है राज़-ए-मोहब्बत का नुमायाँ होना
किए क़रार मगर बे-क़रार ही रक्खा
पत्थरों पे नाम लिखता हूँ तिरा
इंसान के दिल को ही कोई साज़ नहीं है
रहमत-ए-हक़ को न कर मायूस अपने फ़ेअ'ल से
भरे रहते हैं अश्क आँखों में हर दम
हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें