अपनी बे-ए'तिदालियों के सबब
मैं अगर बढ़ गया हुआ कम भी
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ये तमाशा-ए-इल्म-ओ-हुनर दोस्तो
कोई पल जी उठे अगर हम भी
इस को मैं इंक़लाब कहता हूँ
दिल-ए-दरवेश की दुआ से उठा
बात ये है कि बात कोई नहीं
है तल्ख़-तर हयात इस शराब से
लोग जन्नत में जा रहे होंगे
वहम है हस्त भी नीस्त भी वहम है
पस-ए-पर्दा बहुत बे-पर्दगी है
उस ने भी ख़ुद को बे-कनार किया