हम वो लोग हैं जो चाहत में
जी न सकें तो मर रहते हैं
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देखा क़द-ए-गुनाह पे जब इस को मुल्तफ़ित
इक ख़ित्ता-ए-ख़ूँ में कहीं दरिया के किनारे
बेकल है मुख निगाह में बोसों की प्यास है
तिरे हाथ पे खेतों की मिट्टी मिरा मोतियों वाला जामा
और सफ़र लम्बा हुआ हर गाम पर
अब्र नारियल नद्दी रास्ते पे मैं और तू
दिल मिटे प्यार की अपीलों पर
पास भी रह कर दूर है तो
सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा
दो एक साल ही इक से सराही जाती है
रंग और रूप के प्रदीप में खोने दे मुझे
हिजरतों में हूजुरियों के जतन