खिले धान खिलखिला कर पड़े नद्दियों में नाके
घनी ख़ुशबुओं से महके मिरे देस के इलाक़े
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सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा
पुस्तकों में प्रानों में अर्ज़ों में आसमानों में
दिल मिटे प्यार की अपीलों पर
हम वो लोग हैं जो चाहत में
कुछ गुरेज़ाँ भी रहे हम ख़ुद से
जब कि तुझ बिन नहीं मौजूद कोई
हसरत-ए-अहद-ए-वफ़ा बाक़ी है
और सफ़र लम्बा हुआ हर गाम पर
रुत ने रिवायत के रुख़ बदले हर मसऊद सऊद गया
नैन नशे की चढ़ती नुमू पर
तिरे हाथ पे खेतों की मिट्टी मिरा मोतियों वाला जामा
दरिया पे टीकरी से परे ख़ानक़ाह थी