कुछ गुरेज़ाँ भी रहे हम ख़ुद से
कुछ कहानी भी अलमनाक हुई
Javed Akhtar
Wasi Shah
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Parveen Shakir
Rahat Indori
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Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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चौखटा दिल का यहाँ है हू-ब-हू तुझ सा कोई
तो शराफ़तों का मक़ाम है तो सदाक़तों का दवाम है
सूरज सुर्ख़ दिशा में उतरा
यख़-बस्ता ठंडकों में उजाला जड़ा हुआ
और सफ़र लम्बा हुआ हर गाम पर
घर वाले भी सोए हैं अभी शब भी घनी है
दिल पे थी सब्त जो तहरीर मिटाई न गई
पाँव के नीचे सरकती हुई रीत
मजमा' नहीं मुजल्ला है अशआ'र की जगह
नस नस में नशा प्यार का मामूर हुआ है
खिले धान खिलखिला कर पड़े नद्दियों में नाके
हिजरतों में हूजुरियों के जतन