मैं बे-हुनर था मगर सोहबत-ए-हुनर में रहा
शुऊ'र बख़्शा हमा-रंग महफ़िलों ने मुझे
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कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना
कह रही है ये क्या सबा कुछ सोच
जो मेरी आख़िरी ख़्वाहिश की तर्जुमाँ ठहरी
देखा उसे तो आँख से आँसू निकल पड़े
मिसाल-ए-सादा-वरक़ था मगर किताब में था
थोड़ा सा मुस्कुरा के निगाहें मिलाइए
रात सुनसान है गली ख़ामोश
बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं
कोई सन्नाटा सा सन्नाटा है
आँखों में चुभ रही है गुज़रती रुतों की धूप
फूल सहरा में खिला दे कोई