वो भी क्या दिन थे कि जब इश्क़ किया करते थे
हम जिसे चाहते थे चूम लिया करते थे
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(399) Peoples Rate This
एहसास के शरर को हुआ देने आऊँगा
जानिब-ए-दश्त कभी तुम भी निकल कर देखो
मैं बे-हुनर था मगर सोहबत-ए-हुनर में रहा
थोड़ा सा मुस्कुरा के निगाहें मिलाइए
दयार-ए-शौक़ में कोसों कहीं हवा भी नहीं
वो रोब-ए-हुस्न था उस का सलाम भूल गया
तुम तो औरों पे न पत्थर फेंको
आँखों में चुभ रही है गुज़रती रुतों की धूप
बुझी है आग मगर इस क़दर ज़ियादा नहीं
तुझ से मिलूँगा फिर कभी ख़्वाब-ओ-ख़याल भी नहीं
कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना
वो एक शख़्स कि जिस से शिकायतें थीं बहुत