हंगामा-ए-हयात से लेना तो कुछ नहीं
हाँ देखते चलो कि तमाशा है राह का
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सुब्ह-ए-पीरी में फिरा शाम-ए-जवानी का गया
पहली बातें हैं न पहले की मुलाक़ातें हैं
उसे पा-ब-गिल न रखता जो ख़याल-ए-तीरा-बख़्ती
रहते हैं इस तरह से ग़म-ओ-यास आस-पास
तरीक़-ए-दिलबरी काफ़ी नहीं हर-दिल-अज़ीज़ी को
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
उम्र भर का साथ मिट्टी में मिला
मजनूँ से जो नफ़रत है दीवानी है तू लैला
क्यूँ ख़याल-ए-रंज-ओ-राहत से न हों बेगाना हम
इक हर्फ़-ए-शिकायत पर क्यूँ रूठ के जाते हो
कीजिए कार-ए-ख़ैर में हाजत-ए-इस्तिख़ारा क्या
रखता है तल्ख़-काम ग़म-ए-लज़्ज़त-ए-जहाँ