खो दिया शोहरत ने अपनी शेर-ख़्वानी का मज़ा
दाद मिल जाती है 'नातिक़' हर रतब याबिस के बा'द
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(311) Peoples Rate This
रक्खी हुई है सारी ख़ुदाई तिरे लिए
हाँ ये तो बता ऐ दिल-ए-महरूम-ए-तमन्ना
ऐ जुनूँ बाइस-ए-बदहाली-ए-सहरा क्या है
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
मय को मिरे सुरूर से हासिल सुरूर था
दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़ियादा पाँव फैलाती है क्यूँ
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
महफ़िल-ए-नाज़ से मैं हो के परेशान उठा
पहुँच गए तो करेंगे इधर-उधर की तलाश
रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम
गुल शोर कहाँ का है सुन तो सही ओ ज़ालिम