भुला दिया है जो तू ने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तिरा ख़याल नहीं
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उस में रह कर उस के बाहर झाँकना अच्छा नहीं
ग़म की ढलवान तक आए तो ख़ुशी तक पहुँचे
कुछ भँवर यूँ उचट पड़े थे ज्यूँ
अब हवाओं के दाम खुलने हैं
चढ़ा कर तीर नज़रों की कमाँ पर
जिस को अपने बस में करना था उस से ही लड़ बैठा
बग़ैर पूछे मिरे सर में भर दिया मज़हब
और तआ'रुफ़ हमारा हो भी क्या
नए सफ़र का हर इक मोड़ भी नया था मगर
तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था
हम वही नादाँ हैं जो ख़्वाबों को धर कर ताक पर
प्यास को प्यार करना था केवल