गुमाँ मेहर-ए-दरख़्शाँ का हुआ है रू-ए-रौशन पर

गुमाँ मेहर-ए-दरख़्शाँ का हुआ है रू-ए-रौशन पर

तअ'ज्जुब एक आलम को है क्या क्या उन के जोबन पर

पढ़ी जब फ़ातिहा तो पढ़ते पढ़ते हँस दिया गोया

गिराई आप ने बिजली जब आए मेरे मदफ़न पर

हमारा दिल दुखाना कुछ हँसी या खेल समझे हो

समझ पकड़ो जवाँ हो अब न जाओ तुम लड़कपन पर

सुख़न को आप के ऐ हज़रत-ए-दिल किस तरह मानूँ

किसी को ए'तिबार आता नहीं है क़ौल-ए-दुश्मन पर

हमारी आँख से गिरते नहीं ये अश्क के क़तरे

निछावर करते हैं मोती तुम्हारे रू-ए-रौशन पर

नज़र में जैसे 'शीरीं' के तुम्हारा रू-ए-रौशन है

नहीं पड़ती है आँख उस की गुल-ए-शादाब-ए-गुलशन पर

(437) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Nawab Shahjahan Begum Shahjahan. is written by Nawab Shahjahan Begum Shahjahan. Complete Poem in Hindi by Nawab Shahjahan Begum Shahjahan. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.