दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
दिन कहीं रात कहीं सुब्ह कहीं शाम कहीं
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जब उस का इधर हम गुज़र देखते हैं
देख कर कुर्ते गले में सब्ज़ धानी आप की
किसी ने रात कहा उस की देख कर सूरत
उसी का देखना है ढानता दिल
वो चाँदनी में जो टुक सैर को निकलते हैं
हुस्न के नाज़ उठाने के सिवा
अदा के तौसन पर उस सनम को जो आज हम ने सवार देखा
फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है
ये हस्ब-ए-अक़्ल तो कोई नहीं सामान मिलने का
बहर-ए-हस्ती में सोहबत-ए-अहबाब
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
सामान दीवाली का