तेशे की क्या मजाल थी ये जो तराशे बे सुतूँ
था वो तमाम दिल का ज़ोर जिस ने पहाड़ ढा दिया
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लो न हँस हँस के तुम अग़्यार से गुल-दस्तों से
झमक दिखाते ही उस दिल-रुबा ने लूट लिया
बहार
मुंतज़िर उस के दिला ता-ब-कुजा बैठना
नहीं याँ बैठते जो एक दम तुम
उस के बाला है अब वो कान के बीच
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
सामान दीवाली का
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
क़त्ल पर बाँध चुका वो बुत-ए-गुमराह मियाँ
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो