था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से
वो भी एे शोख़ तिरा चाहने वाला निकला
Gulzar
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Rahat Indori
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Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
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मुखड़े को जो उस के हम ने जा कर देखा
मय भी है मीना भी है साग़र भी है साक़ी नहीं
न इतना ज़ुल्म कर ऐ चाँदनी बहर-ए-ख़ुदा छुप जा
जिस्म क्या रूह की है जौलाँ-गाह
कहते हैं याँ कि ''मुझ सा कोई मह-जबीं नहीं''
देखेंगे हम इक निगाह उस को
पुकारा क़ासिद-ए-अश्क आज फ़ौज-ए-ग़म के हाथों से
दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
वो सनम जो मेहर-एज़ार है उसे हम से मिलने में आर है
अदा-ओ-नाज़ में कुछ कुछ जो होश उस ने सँभाला है
बगूले उठ चले थे और न थी कुछ देर आँधी में
इश्क़ फिर रंग वो लाया है कि जी जाने है