ठहरना इश्क़ के आफ़ात के सदमों में 'नज़ीर'
काम मुश्किल था पर अल्लाह ने आसान किया
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मह है अगर जू-ए-शीर तुम भी ज़री-पोश हो
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
सामान दीवाली का
रक्खी हरगिज़ न तिरे रख ने रुख़-ए-बदर की क़द्र
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
राखी
मुँह से पर्दा न उठे साहब-ए-मन याद रहे
फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है
उस के बाला है अब वो कान के बीच
हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
भुला दीं हम ने किताबें कि उस परी-रू के