बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की
सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Gulzar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(389) Peoples Rate This
काबा ओ बुत-ख़ाना आरिफ़ की नज़र से देखिए
ये आह-ए-बे-असर क्या हो ये नख़्ल-ए-बे-समर क्या हो
दिल इस तरह हवा-ए-मोहब्बत में जल गया
पुर्सिश जो होगी तुझ से जल्लाद क्या करेगा
आ के मुझ तक कश्ती-ए-मय साक़िया उल्टी फिरी
उड़ा कर काग शीशे से मय-ए-गुल-गूँ निकलती है
ये दिल की बे-क़रारी ख़ाक हो कर भी न जाएगी
मुझ को समझो यादगार-ए-रफ़्तगान-ए-लखनऊ
इस महीना भर कहाँ था साक़िया अच्छी तरह
तन्हा नहीं हूँ गर दिल-ए-दीवाना साथ है
संग-ए-जफ़ा का ग़म नहीं दस्त-ए-तलब का डर नहीं
किया है उस ने हर इक से विसाल का वादा