असीरी में बहार आई है फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ कर लें
नफ़स को ख़ूँ-फ़िशाँ कर लें क़फ़स को बोस्ताँ कर लें
Habib Jalib
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गोर-ए-ग़रीबाँ
किसी से बस कि उमीद-ए-कुशूद-ए-कार नहीं
नज़र कहीं नहीं अब आते हज़रत-ए-नासेह
रोज़-ए-सियह में साथ कोई दे तो जानिए
हँसी में वो बात मैं ने कह दी कि रह गए आप दंग हो कर
ये दिल की बे-क़रारी ख़ाक हो कर भी न जाएगी
जोश-ए-गुल
अपनी दुनिया तो बना ली थी रिया-कारों ने
सहर को उठते हैं वो देख कर कफ़-ए-रंगीं
मुझ को समझो यादगार-ए-रफ़्तगान-ए-लखनऊ
शिरकत-ए-महफ़िल
यूँ मैं सीधा गया वहशत में बयाबाँ की तरफ़