सहर को उठते हैं वो देख कर कफ़-ए-रंगीं
अब आइने पे भी सिक्के हिना के बैठ गए
Rahat Indori
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Habib Jalib
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Jaun Eliya
Parveen Shakir
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लोटते रहते हैं मुझ पर चाहने वालों के दिल
काबा ओ बुत-ख़ाना आरिफ़ की नज़र से देखिए
जुनूँ के वलवले जब घुट गए दिल में निहाँ हो कर
ये हुआ मआल हुबाब का जो हवा में भर के उभर गया
आ के मुझ तक कश्ती-ए-मय साक़िया उल्टी फिरी
अपनी दुनिया तो बना ली थी रिया-कारों ने
तन्हा नहीं हूँ गर दिल-ए-दीवाना साथ है
नदामत है बना कर इस चमन में आशियाँ मुझ को
असीरी में बहार आई है फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ कर लें
यूँ तो न तेरे जिस्म में हैं ज़ीनहार हाथ
गोर-ए-ग़रीबाँ
किया है उस ने हर इक से विसाल का वादा