न बन आया जब उन को कोई जवाब
तो मुँह फेर कर मुस्कुराने लगे
Gulzar
Rahat Indori
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(425) Peoples Rate This
मज़ा क्या जो यूँही सहर हो गई
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दम
कू-ए-जानाँ में गर अब जाएँ भी तो क्या देखें
उठता हूँ उस की बज़्म से जब हो के ना-उमीद
मंज़ूर क्या है ये भी तो खुलता नहीं सबब
याँ किसे ग़म है जो गिर्या ने असर छोड़ दिया
इस क़दर आप का इताब रहे
आँखें फूटें जो झपकती भी हों
अब आओ मिल के सो रहें तकरार हो चुकी
हाल-ए-दिल तुम से मिरी जाँ न कहा कौन से दिन
क्यूँ करते हो ए'तिबार मेरा