हिज्र का मौसम झेली हो
ऐसी एक सहेली हो
तेरे क़ुर्ब की ख़ुश्बू हो
चम्पा हो न चमेली हो
ऐसा कौन सा दरिया है
जिस ने प्यास न झेली हो
हर इक राह पे साथ चले
ऐसा अल्हड़ बेली हो
उस की हर इक बात है यूँ
जैसे कोई पहेली हो
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ये अलग बात कि हम सा नहीं प्यासा कोई
जाने किस मोड़ जुदाई की घड़ी आती है
ख़ुमार-ए-तिश्ना-लबी में ये काम कर आए
जाने क्या ताज़ीर लगी है
हर कठिन मोड़ पे बनते हैं सहारे मेरे
हवा की आँख में काजल नहीं है
तिरी क़ुर्बत में जो रही होगी
जब जब इस को सोचा है
जाने क्यूँ प्यास की चौखट पे वो आ बैठा है
यूँ तो देखी हैं मिरे यार सभी की आँखें
उस की ख़ुश्बू की चाप सुनते ही